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दुविधा में भारत

भारत मुख्य रूप से दो धड़ों में विभाजित है एक है अमीर का तबका और दूसरा है गरीब का। बीच वाले लोग कहीं भी किसी पटल पर नहीं दिखते । यह भारतीय राजनीति की समानांतर स्थिति है इन बीते सत्तर सालों में।हमेशा गरीबी और गरीबों की बात तो होती रही पर इसका ज्यादातर फायदा परोक्ष रूप से एक खास तबके को हुआ है।यह कहना अतिश्योक्ति नही होगा कि बीते सात दशक में अमीर और अमीर बन गए हैं जबकि गरीबों की स्थिति बद से बदतर होती चली जा रही है।
अगर हम समसामयिक राजनीति की तरफ एकबारगी सही से परीक्षण करें तो यह साफ साफ नजर आता है कि न तो पीएम मोदी और ना ही राहुल किसी एक धड़े(अमीर /गरीब) में अपने आपको रखना चाहते है। दोनों दुविधा में हैं। यही बात क्षेत्रीय दलों में भी देखने को मिलती है। दोनों बात करते हैं गरीबों के विकास की पर इनमें से किसी के पास भी 'क्लियर विज़न' नहीं है। स्पष्ट दृष्टि ही आपको अग्रसरित करती है। दूरदर्शिता के अभाव में आँख रहते भी ये अंधे हैं।


वर्तमान परिवेश में यह राजनीति और ये राजनीतिज्ञ पंगु हैं। कॉंग्रेस के गरीबी उन्मूलन का कार्यक्रम सिर्फ एक दिखावा रहा जबकि बीजेपी का महज छलावा है। 2017 के एक सर्वे के अनुसार भारत की एक फीसदी लोग के पास भारत की GDP का पचपन(५५) प्रतिशत हिस्सा है। बचे पैतालीस(४५) प्रतिशत में भारत की निन्यानवे(९९) प्रतिशत लोग किसी तरह गुजर बसर कर रहे हैं। अमीरी और गरीबी की खाई दिन-ब-दिन इतनी गहरी  होती जा रही है कि इसे पाटना मुश्किल नही अपितु असंभव सा मालूम प्रतीत होता है।
डॉ. कलाम अपनी किताब 'You are Born to Blossom' में कहते हैं, "जब तक भारत सामाजिक परिवर्तन,सरकारी प्रणाली और सरकारी संस्थानों की मान्यता को सुरक्षा देंने और उनका स्तर बढ़ाने की प्रक्रिया में तेजी नहीं लाएगा,यह संभावना बनी रहेगी कि अज्ञानता और भ्रम रुकावट बन सकते हैं और विकास की गति धीमी कर सकते हैं।" मेरा यह विश्वास है कि हमारे समाज के नैतिक मूल्यों को ध्यान रखते हुए वैज्ञानिक आधार से निर्देशित समझ, आम राय और कार्य से हम हर स्तर पर अपनी कार्य-प्रणालियाँ स्थापित कर सकते हैं। हमें अपने आप को शिक्षित करना पड़ेगा। शिक्षा का अर्थ, कृष्णमूर्ति के अनुसार-जड़ता से आजादी और मस्तिष्क में जमे ज्ञान की एक परंपरा से आजादी है।

अमेरिकी लेखक आर्थर वाल्डो इमर्सन के शब्दों में-
"विचारों की चमत्कारिक गति से
अपने शानदार लक्ष्यों की तरफ जाएँ,
किसान ने बीजों को बिखेरा है
गेहूँ की तरह आत्मा का भी पूर्ण विकास होगा ।"
वास्तव में हमारे पास कोई और विकल्प नहीं है। हमें बहुत काम करने होंगे। हमारा बहुत कुछ दाँव पर लगा है।

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