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सबकुछ जीवन को देखने के ढंग पर निर्भर है।

जीवन में कोई चीज रुकी हुई नही है, सभी चीजें गतिमान हैं। जीवन एक प्रवाह है। या तो पिछे की तरफ जाओ, या आगे की तरफ जाओ, रुकने का कोई उपाय नहीं है। जो जरा भी रुका, वह भटका...

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दार्शनिक ओशो कहते हैं 'सबकुछ जीवन को देखने के ढंग पर निर्भर है। अगर तुम्हारे देखने का ढंग गलत है, तो जीवन तुम्हारे साथ जो भी करेगा वह गलत होगा । अगर तुम्हारे देखने का ढंग सही है, तो जीवन तो यही है कोई और दूसरा जीवन नही है, लेकिन तब तुम्हारे साथ जो भी होगा वही ठीक होगा। 

बुद्ध भी इसी पृथ्वी से गुजरतें हैं, तुम भी इसी पृथ्वी से गुजरते हो। यही चांद - तारे हैं। यही आकाश है। यही फूल है। लेकिन एक के जीवन में रोज - रोज पवित्रता बढ़ती चली जाती है। एक रोज - रोज निर्दोष होता जाता है। निखरता चला जाता है। और दूसरा रोज-रोज बोझिल होता जाता है, धूल से भरता जाता है, अपवित्र होता जाता है, गंदा होता जाता है। मृत्यु जब बुद्ध को लेने आएगी तो वहां तो पाएगी मंदिर की पवित्रता, वहां पाएगी मंदिर की धूप, मंदिर के फूल। वहां तो पाएगी एक कूंवारापन, जिसको कुछ भी विकृत न कल पाया...'

जैसा कि कबीर ने कहा है, "ज्यों की त्यों धरि दिन्ही चदरिया".. इस प्रकार बुद्ध तो चादर को वैसा का रख देंगे। 


मुझे तो लगता है कबीर ने जो कहा, वह सत्य को बहुत धीमे स्वर में कहा है। क्योंकि मेरी दृष्टि ऐसी है कि जब बुद्ध चादर लौटाएंगे तो वह और भी पवित्र होगी। उससे भी ज्यादा पवित्र होगी जैसी उन्होंने पायी थी। होनी भी चाहिए। क्योंकि जो पवित्रता बुद्ध को बीज की तरह मिली थी, बुद्ध उसे एक बड़े वृक्ष की तरह लौटाएंगे। बुद्ध ने चदरिया को और भी निखार कर लौटाया है। जो बीज थे वह फूल की तरह लौटाया। 

असल में तुम जिसे सम्हालोगे वही बढ़ने लगता है। जीवन में कोई चीज रुकी हुई नही है, सभी चीजें गतिमान है। जीवन एक प्रवाह है। या तो पिछे की तरफ जाओ, या आगे की तरफ जाओ, रुकने का कोई उपाय नहीं है। जो जरा भी रुका, वह भटका... प्रेम तो बस प्रेम है..जिसे शब्दों में बांधा नहीं जा सकता। 

ये कोई मायने नहीं रखता है कि आप किसे प्रेम करते हैं, कहाँ प्रेम करते हैं, क्यों प्रेम करते हैं, कब प्रेम करते हैं, कैसे प्रेम करते हैं और किसलिए प्रेम करते हैं, मायने सिर्फ यह रखता है   कि आप केवल प्रेम करते हैं।

प्रेम के विषय मे ओशो एक कदम आगे बढ़कर कहते हैं कि आप जितने लोगों को चाहें उतने लोगों को प्रेम कर सकते हैं- इसका ये मतलब कतई नहीं है कि आप एक दिन दिवालिया हो जाएंगे, और कहेंगे, " अब मेरे पास प्रेम नहीं है।" जहाँ तक प्रेम का सवाल है आप दिवालिया नहीं हो सकते।।

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