स्वयम्वर में जब किसी से 'शिवजी का धनुष' नहीं टूटा तो राजा जनक की स्थिति ठीक उसी तरह हो गई थी जैसे एक मिडिल क्लास पप्पा का होता है। जो अपनी बेटी के लिए दिन-रात राम टाइप लईका ढूंढते रहते हैं ..
आम लड़कियों की तरह सीता जी भी काफी समझदार थी और फ्यूचर कान्सेस भी। लइकन का क्या उसको तो अक्सर विश्वामित्र जैसे गुरु मिल ही जाते हैं जो अपने चेले को ताड़िका, सुबाहु और मारीच को मारने के लिए मोर्चे पर लगा देते हैं। लेकिन विश्वामित्र जैसे गुरु के मन मे भी यही इच्छा उठी की सीता जी का राम जी के संग सेटिंग हो जाये और इस प्रकार एक दिन पहिले ही राम-सीता विवाह के 'खेल का दी एन्ड' हो चुका था।
प्रेम का बीज बगीचे में ही लग गया था..एक झटके में ..देखा तुझे तो, हो गई दीवानी टाइप.. सीता जी सुबह-सुबह पूजा की थाल लिए दोनों तरफ़ लगे लाल-लाल गुलाबों की क्यारियों के बीच से गुज़र रही थी कि अचानक दूर खड़े डैशिंग राम नज़र आये.. और फिर क्या..लव एट फर्स्ट साइट..
महाकवि तुलसीदास जी अपने रामचरितमानसमें कहते हैं कि -
सिय चकित चित रामहि चाहा, भये मोहबस सब नरनाहा ।
मुनि समीप देखे दोउ भाई, लगे ललकि लोचन निधि पाई ।।
प्यार तो झटके में ही शुरू होता है ब्रो..बाकि तो मोदी सरकार वाली कॉन्ट्रैक फार्मिंग। वस्तुतः सीता के इस प्रेम व आकर्षण से ही राम में वो शक्ति निहित हुई जिससे राम उस धनुष को तोड़ने में कामयाब हुए और परशुराम जी के धनुष की डोरी चढ़ाने में..ये उस प्रेम की शक्ति थी जिसमें राम को 'राम' बनाने का आवेग है ..
भगवान राम और माता सीता के इस सच्चे प्रेम व समर्पण को देख बाबा वैलेनटाइन ने झट से गुलाब की क्यारियों में से एक गुलाब चुराके आज के ही दिन अपनी-वाली को समर्पित कर वर्ल्ड इतिहास में "रोज़ डे" (Rose🌹day) के नाम से अमर कर दिया ..
सियावर रामचंद्र की जय ।।
No comments:
Post a Comment