2015 में एकबारगी ऐसा लगा कि हार्दिक पटेल एक मज़बूत कम्युनिटी का मसीहा बन जाएगा...लेकिन क्या हुआ ? उसी तरह साल 2016 में JNU के बीहड़ों से निकले कन्हैया कुमार मज़दूरों और दबे-कुचलों के सारे दुख-दर्द दूर कर देगा ..लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात ।
लेकिन सिलसिला यहीं नही थमा और 2017 में गुजरात मे दंगे कराकर मशहूर हुए जिग्नेश मेवानी जिसे एक बारगी फिर दलितों के मसीहा के तरह देखा गया और लोग सोचने लगे कि अब दलित वोट कंसॉलिडेट हो जायेगे ..पर क्या ऐसा हुआ ?
और फिर 2018 -19 में दो क्रांतिकारी नाम आये शेहला राशिद और शाह फैसल जिसे छात्रों और मुसलमानों का एक नया प्रतीक समझ गया ..लेकिन यह केवल प्रतीकात्मक ही रहा.. ये दोनों भी अति महत्वाकांक्षा के चक्कर मे न घर के बचे न घाट के ...
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साल 2020, जो पूरे विश्व के लिए एक चुनौती भरा साल रहा । आमलोगों के साथ भी कई देशों के सरकार की भी कमर टूट गयी फिर भी आगे बढ़ने को हमेशा तत्पर भारत ने बखूबी अपने अपने आप को इन चुनौतियों से संभाला । और आज अपनी बुद्धिमता व परिश्रम के साथ कोविड जैसी महामारी का न सिर्फ वैक्सीन बनाया बल्कि कई देशों को बेच रही है। जिससे न सिर्फ भारत की अर्थव्यवस्था में इज़ाफ़ा हो रहा है बल्कि दुनिया मे हमारी साख बढ़ रही है ।
लेकिन किस्सा खत्म यहीं नहीं होता है सितम्बर 20-22 को संसद के दोनों सदनों में कृषि कानून बिल पास होता है । जानकारी के लिए बता दूं कि राज्य सभा में वर्तमान सरकार की संख्या माइनॉरिटी में है तथा इसे ' वॉइस वोट' से पारित किया गया न कि बैलेट से। विरोध मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है के तौर पर शुरू हुआ सरकार के विपक्षियों द्वारा देशव्यापी बंद और हड़ताल ( 26 नवम्बर 2020) का नाटक। मुख्य रूप से
हरियाणा और पंजाब के किसानों ने दिल्ली को घेराव करना शुरू किया...। फिर, इस विरोध की गर्मी से उत्पन्न हुआ राकेश टिकैत "जाटों व किसानों का नया पैगम्बर " ...
किसान आंदोलन ने 'टिकैत' के नाम पर देश को शर्मसार करने वाली बेहूदगी कीं। वैसे टिकैत लोकसभा चुनाव भी लड़े लेकिन वोट महज़ 9000 ही मिले। परिवार तो पैसा लेकर आंदोलन करने के लिए पहिले से ही कुख्यात रहा है.. लीगल एक्शन चालू है, एजेंसियां लगी हुई है..., सबूत और फंडिंग सब बाहर आएंगे..शायद भारत में सोशल मीडिया से उपजे एक और नेता अपने करियर के ढलान पर दिख रहा है ..
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