Latest Posts

ब्राह्मणवाद

आजकल नए शब्द 'ब्राम्हणवाद' का चलन जोरों पर है। और ऐसे शब्दों ने ब्राह्मणों के अस्तित्व को चुनौती दे दी है। कभी कभी तो ऐसा लगा कि मैं एक बोझ हूँ इस धरती पर,कारण हमारे पूर्वज हैं। लेकिन आज जब  समाज के हर वर्गों व उनकी प्राथमिकताओं पर सिलसिलेवार तरीके से अध्ययन करता हूँ तो एक साथ कई तथ्यों पर ध्यान अटकता है। समाजशात्र कि सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है समाज व उसके तौर तरीके को समझना एवम मनन करना। एक जाति विशेष होने के कारण नहीं पर 'पब्लिक सर्विस कमीशन' के तैयारी की एक होलिस्टिक सोच के कारण कह सकता हूँ कि, ब्राहमणो ने समाज को तोडा नही अपितु जोडा है।
1.ब्राहमण ने विवाह के समय समाज के सबसे निचले पायदान पर खडे हरिजन को जोड़ते हुये अनिवार्य किया कि हरिजन स्त्री द्वारा बनाये गये चुल्हेपर ही सभी शुभाशुभ कार्य होगे।
इस तरह सबसे पहले हरिजन को जोडा गया .....
2. धोबन के द्वारा दिये गये जल से से ही कन्या सुहागन रहेगी इस तरह धोबी को जोड़ा...
3.कुम्हार द्वारा दिये गये मिट्टी के कलश पर ही देवताओ के पुजन होगें यह कहते हुये कुम्हार को जोड़ा.
4. मुसहर जाति जो वृक्ष के पत्तो से पत्तल दोनिया बनाते है यह कहते हुये जोडा कि इन्ही के बनाए गये पत्तल दोनीयो से देवताओ के पुजन सम्पन्न होगे...
5. कहार जो जल भरते थे यह कहते हुए थोड़ा कि इन्ही के द्वारा दिये गये जल से देवताओ के पुजन होगें...
6.बिश्वकर्मा जो लकडी के कार्य करते थे यह कहते हुये जोडा कि इनके द्वारा बनाये गये आसन चौकी पर ही बैठ कर बर बधू देवताओ का पुजन करेंगे ...

7. फिर वह हिन्दु जो किन्ही कारणो से मुसलमान वन गये थे उन्हे जोडते हुये कहा कि इनके द्वारा सिले गये वस्त्रो जोड़े जामे को ही पहन कर विवाह सम्पन्न होगें...
8.फिर मुसलमान की स्त्री को यह कहते हुये जोडा कि इनके द्वारा पहनायी गयी चुणिया ही बधू को सौभाग्यवती बनायेगी...

9.धारीकार जो डाल और मौरी जो दुल्हे के सर पर रख कर द्वारचार कराया जाता है को यह कहते हुये जोड़ा की इनके द्वारा बनाये गये उपहारो के बिना देवताओ का आशीर्बाद नही मिल सकता।

जब इस तरह समाज के सभी वर्ग जब आते थे तो घर की महिलाये मंगल गीत का गायन करते हुये उनका स्वागत करती थी और पुरस्कार सहित दक्षिणा देकर बिदा करती थी...,
ब्राहमणो का कहाँ दोष है....हॉ ब्राहमणो का दोष है कि इन्होने अपने उपर लगाये गये निराधार आरोपो का कभी खन्डन नही किया ।जो ब्राहमणो के अपमान का कारण बन गया इस तरह जब समाज के हर वर्ग की उपस्थिति हो जाने के बाद ब्राहमण नाई से पुछता था कि क्या सभी वर्गो की उपस्थिति हो गयी है?
नाई के हाँ कहने के बाद ही ब्राहमण मंगल पाठ प्रारम्भ करता था। ब्राहमणो द्वारा जोड़ने की क्रिया छोड़ा हम लोगो ने और दोष ब्राहमणो पर लगा दिया।
लेकिन यह याद रखो ब्राम्हण का मतलब वो पाण्डे ,मिश्रा, चतुर्वेदी व झा जी नही जो मंदिर को दुकान बनाते हैं।

No comments:

Post a Comment

THE CYNICAL MIND Designed by Templateism Copyright © 2019

Powered by Blogger.