वशिष्ठ नारायण (Vashishtha Narayan Singh) अब स्वर्गीय हो चुके हैं। हालाकि इनका जीवन अधिकतर गुमनामी में बीता | फिर भी , कुछ महीनों से अपनी लाचारगी, सरकारी लापरवाही और बीमारी के कारण फेसबुक, ट्विटर आदि जैसे सोशल मीडिया पर छाए हुए थे । अपनी जवानी में 'वैज्ञानिक जी' के नाम से मशहूर वशिष्ठ नारायण सिंह पिछ्ले ४० वर्षों से मानसिक बिमारी सिजोफ्रेनिया (मनोविदलता) से पीड़ित थे .
वशिष्ठ नारायण का प्रारंभिक जीवन :
इनका जन्म 2 April 1942 को बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर गाँव में हुआ था . इनके पिता लाल बहादुर सिंह पुलिस विभाग में कांस्टेबल थे और माँ लह्सो देवी घर के काम काज संभालती थी . #वशिष्ठ_नारायण बचपन से प्रतिभाशाली थे . पटना साइंस कॉलेज में बतौर छात्र गलत पढ़ाने पर अपने गणित के अध्यापक को बीच में ही टोक देते थे . जब यह बात कॉलेज के प्राध्यापक को पता चला तो इनकी अलग से परीक्षा ली गयी जिसमे उन्होंने सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले .
और पढ़ें -
वशिष्ठ नारायण की अमेरिका यात्रा :
उनकी इस प्रतिभा का पता जब कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन कैली को पता चला तो उन्होंने वशिष्ठ को १९६५ में अमेरिका बुला लिया जहां से उन्होंने पीएचडी (in Reproducing Kernels and Operators with a Cyclic Vector (Cycle Vector Space Theory) in 1969 ) की डिग्री ली .
उनके तेज दिमाग का इस बात से पता लगाया जा सकता है की जब नासा में अपोलो मिशन (ये वहीं मिशन था जिसमें पहली बार इंसान को चांद पर भेजा गया था ) की लौन्चिंग चल रही थी तो लौन्चिंग से ठीक पहले 31 कंप्यूटर बंद हो गए जब कंप्यूटर फिर से चालू हुआ तो वशिष्ठ नारायण और कंप्यूटर का कैलकुलेशन बिलकुल एक था .
इतना ही नहीं इन्होने आइन्स्टीन के ' सापेक्षता के सिद्धांत ' को भी चुनौती दी थी . बर्केल यूनिवर्सिटी ने उन्हें 'जीनियसों का जीनयस' ' कहा है. लेकिन अमेरिका इनको रास नहीं आया और पुनः वापिस भारत आ गए .
वशिष्ठ नारायण का वैवाहिक जीवन और पागलपन :
इनकी शादी १९७३ में वंदना रानी सिंह के साथ हुयी जो महज तीन साल तक ही टिक पाई और इनसे तलाक ले लिया गया और इस सदमे ने १९७६ में वशिष्ठ को झारखण्ड के काँके पागलखाने पहुंचा दिया . अपनी मानसिक विक्षिप्तता के कारन सन १९९३ में सारण जिले डोरीगंज में एक होटल के नीचे जूठे पत्तल पर भोजन तलाशते मिले .
वशिष्ठ नारायण और बिहार सरकार :
लालू यादव उस समय बिहार के मुख्यमंत्री थे . जब उन्हें इस बात का पता चला तो लालू जी ने 1994 में ही वशिष्ठ बाबू के बेहतर इलाज के लिए बंगलुरु के निमहंस अस्पताल में सरकारी खर्चे पर भर्ती कराया। 1997 तक उनका इलाज चला। जब स्थिति में सुधार हुई तो वे अपने गाँव बसंतपुर लौट आये। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री लालू यादव ने वशिष्ठ बाबू एवं उनके परिजनों की माली हालत सुधारने हेतु उनके भाई-भतीजे को सरकारी नौकरी भी दी। लेकिन आज खुद को सुशासन का प्रतीक कहने वाली नीतीश सरकार जब संवेदनहीनता के आरोप में घिरी है, तब बरबस ही लालू जी की यादें ताजा हो आई।
IIT कानपुर के प्राध्यापक रहे स्वर्गीय नारायण एक सुपरनोवा की तरह आये जिसकी चमक हमने देखी लेकिन उसे सहेज न सके। आज 'वशिष्ठ बाबू अमर रहें!' का नारा लग रहा है लेकिन मरने के बाद भी कई घंटों तक एम्बुलेंस की भी सुविधा न देना हमारी अति-असंवेदनशीलता को दिखाता है।
#TheCynicalMind
असल जिंदगी में हम इतने बिज़ी हो चुके हैं कि किसी की याद उसके मरने के बाद ही आती है। जीते जी तो हम कबीर को भी न पहचाने। यातनाओं से हमने कबीर को भी त्रस्त कर दिया और आज पूज रहे हैं। ऐसे वर्तमान सदी के भी कई लोग हैं जिनमें मांझी और नारायण भी शामिल हैं।
सरकार समाज के लोग चुनते हैं। सरकार का खर्च समाज के लोग उठाते हैं। सरकार को गिरने से हम बचाते हैं लेकिन सरकार के लोग समाज के असाधारण लोगों को जानबूझकर नज़रअंदाज़ कर देती है। यह अकारण नहीं है दरअसल , सरकार को इनकी बुद्धिमत्ता से खतरा है।
वशिष्ठ नारायण जैसे और भी कई ऐसे विरले हैं जिन्हें हमें तलाशना होगा, उन्हें सहेजना होगा ताकि हमें बेहतर भविष्य मिल सके। नए उपक्रम कर सकें। तीस कम्प्यूटर से भी तेज दिमाग चलाने वाले वशिष्ठ नारायण हमारे कहने मात्र से अमर नहीं हो जाएंगे। उनके ज्ञान की गंगा अविरल है और यही उनकी अमरता है।
स्वर्गीय नारायण जी को नमन।
वशिष्ठ नारायण अपने भाई के साथ |
इनका जन्म 2 April 1942 को बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर गाँव में हुआ था . इनके पिता लाल बहादुर सिंह पुलिस विभाग में कांस्टेबल थे और माँ लह्सो देवी घर के काम काज संभालती थी . #वशिष्ठ_नारायण बचपन से प्रतिभाशाली थे . पटना साइंस कॉलेज में बतौर छात्र गलत पढ़ाने पर अपने गणित के अध्यापक को बीच में ही टोक देते थे . जब यह बात कॉलेज के प्राध्यापक को पता चला तो इनकी अलग से परीक्षा ली गयी जिसमे उन्होंने सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले .
और पढ़ें -
वशिष्ठ नारायण की अमेरिका यात्रा :
उनके तेज दिमाग का इस बात से पता लगाया जा सकता है की जब नासा में अपोलो मिशन (ये वहीं मिशन था जिसमें पहली बार इंसान को चांद पर भेजा गया था ) की लौन्चिंग चल रही थी तो लौन्चिंग से ठीक पहले 31 कंप्यूटर बंद हो गए जब कंप्यूटर फिर से चालू हुआ तो वशिष्ठ नारायण और कंप्यूटर का कैलकुलेशन बिलकुल एक था .
इतना ही नहीं इन्होने आइन्स्टीन के ' सापेक्षता के सिद्धांत ' को भी चुनौती दी थी . बर्केल यूनिवर्सिटी ने उन्हें 'जीनियसों का जीनयस' ' कहा है. लेकिन अमेरिका इनको रास नहीं आया और पुनः वापिस भारत आ गए .
वशिष्ठ नारायण का वैवाहिक जीवन और पागलपन :
इनकी शादी १९७३ में वंदना रानी सिंह के साथ हुयी जो महज तीन साल तक ही टिक पाई और इनसे तलाक ले लिया गया और इस सदमे ने १९७६ में वशिष्ठ को झारखण्ड के काँके पागलखाने पहुंचा दिया . अपनी मानसिक विक्षिप्तता के कारन सन १९९३ में सारण जिले डोरीगंज में एक होटल के नीचे जूठे पत्तल पर भोजन तलाशते मिले .
वशिष्ठ नारायण जब विक्षिप्त अवस्था में मिले |
लालू यादव उस समय बिहार के मुख्यमंत्री थे . जब उन्हें इस बात का पता चला तो लालू जी ने 1994 में ही वशिष्ठ बाबू के बेहतर इलाज के लिए बंगलुरु के निमहंस अस्पताल में सरकारी खर्चे पर भर्ती कराया। 1997 तक उनका इलाज चला। जब स्थिति में सुधार हुई तो वे अपने गाँव बसंतपुर लौट आये। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री लालू यादव ने वशिष्ठ बाबू एवं उनके परिजनों की माली हालत सुधारने हेतु उनके भाई-भतीजे को सरकारी नौकरी भी दी। लेकिन आज खुद को सुशासन का प्रतीक कहने वाली नीतीश सरकार जब संवेदनहीनता के आरोप में घिरी है, तब बरबस ही लालू जी की यादें ताजा हो आई।
IIT कानपुर के प्राध्यापक रहे स्वर्गीय नारायण एक सुपरनोवा की तरह आये जिसकी चमक हमने देखी लेकिन उसे सहेज न सके। आज 'वशिष्ठ बाबू अमर रहें!' का नारा लग रहा है लेकिन मरने के बाद भी कई घंटों तक एम्बुलेंस की भी सुविधा न देना हमारी अति-असंवेदनशीलता को दिखाता है।
वशिष्ठ नारायण अपनी माँ लहसो देवी जी के साथ |
#TheCynicalMind
असल जिंदगी में हम इतने बिज़ी हो चुके हैं कि किसी की याद उसके मरने के बाद ही आती है। जीते जी तो हम कबीर को भी न पहचाने। यातनाओं से हमने कबीर को भी त्रस्त कर दिया और आज पूज रहे हैं। ऐसे वर्तमान सदी के भी कई लोग हैं जिनमें मांझी और नारायण भी शामिल हैं।
सरकार समाज के लोग चुनते हैं। सरकार का खर्च समाज के लोग उठाते हैं। सरकार को गिरने से हम बचाते हैं लेकिन सरकार के लोग समाज के असाधारण लोगों को जानबूझकर नज़रअंदाज़ कर देती है। यह अकारण नहीं है दरअसल , सरकार को इनकी बुद्धिमत्ता से खतरा है।
वशिष्ठ नारायण जैसे और भी कई ऐसे विरले हैं जिन्हें हमें तलाशना होगा, उन्हें सहेजना होगा ताकि हमें बेहतर भविष्य मिल सके। नए उपक्रम कर सकें। तीस कम्प्यूटर से भी तेज दिमाग चलाने वाले वशिष्ठ नारायण हमारे कहने मात्र से अमर नहीं हो जाएंगे। उनके ज्ञान की गंगा अविरल है और यही उनकी अमरता है।
स्वर्गीय नारायण जी को नमन।
No comments:
Post a Comment