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मैं कौन !

न मैं सत्य हूँ न असत्य हूँ
ना ही मर्त्य मैं न अमर्त्य हूँ
मैं ना पाप हूँ ना निष्पाप हूँ
न वरदान ही न अभिशाप हूँ
न जाऊँ नर्क में ना  स्वर्ग ही
मेरा ना अंत है, न उत्सर्ग ही
ना मैं जीत हूँ ना हार हूँ
ना ही प्रकाश मैं, ना अंधकार हूँ।।
मैं न सोच में न विचार में
ना ही बोली और व्यवहार में
ना ही युक्ति में न विरक्ति में
मैं हूँ चेतना की शक्ति में
मैं तरंग हूँ आनंद का
आनंद ही प्रतिरूप है
मैं ही साक्षी हूँ और साक्ष्य भी
यह मेरा भव्य स्वरुप है। ।
                                        : 'चन्दन गुंजन'
                        

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