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कर्मयोग या भोग (संस्मरण)

इसी साल जनवरी 2017, प्रगति मैदान के पुस्तक मेले में एक अजीब सा पोस्टर चारों तरफ झकझका रहा था। पोस्टर विस्मित करने वाला था। दिल मे गुदगुदी के जगह लगा कि कोई बार बार उंगली कर रहा है। 14  जनवरी , मकर संक्रांति और ऊपर से दिल्ली की नस कपकपा देने वाली सर्दी में किसी तरह नहाया और जल्दी जल्दी में चूड़ा-दही खाकर निकल पड़े थे बुक फेयर को। सच कह रहा हूँ उतनी सर्दी के बावजूद भी वह पोस्टर दिलों-दिमाग मे गर्मी पैदा किये जा रहा था। पोस्टर का एक शब्द बार बार लोहार के हथौड़े की भांति मेरे सनकी बुद्धि पर प्रहार किए जा रहा था और वह शब्द था "कर्मयोगी"। 
     यकीन मानिए वह शब्द जिसके साथ लगा था वहां न 'कर्म' था और ना ही 'योग', यह महज था तो सिर्फ एक 'संयोग'। करम और धरम से कोई लेना देना नही था, यह था तो एक जोग, एक भोग तथा अपने आप को महिमामंडित करने का एक भयंकर रोग। दरअसल पोस्टर था "Indian Railway- The weaving of a National Tapestry”  नामक एक किताब का , जिसके लेखक है 'कर्मयोगी सुरेश प्रभु'। पोस्टर में प्रभु जी के एक बड़े तस्वीर के साथ कर्मयोगी बोल्ड लेटर्स में था और किताब का नाम बमुश्किल दिखाई दे रहा था। इस पोस्टर से सटे एक और मजेदार पोस्टर लगी थी 'कर्मयोगिनी उमा प्रभु' जी का जो हमारे रेलमंत्री की पत्नी हैं। सच पूछिए तो कर्मयोग जैसे अनुशासनिक शब्द से जी उठ गया। इस मनी-योग में पैसे के जोड़-घटाव ने व्यक्ति विशेष को गौरवान्वित करने का जो एक झूठा चलन बनाया है, मन खिन्ना गया।

'कृ' धातु से बना कर्मयोग, प्रभु जैसे कर्मयोगी के 'कृत्यों' का उजागर करता है। इनका D फ़ॉर डिजिटल नहीं वरन डिस्ट्रॉय है। जनवरी की झन्ना देनेवाली सर्दी में अपने आप को महिमामंडित करने के चक्कर मे अपने पद का उत्तरदायित्व भूले प्रभु जी की नींद तब खुली जब 21 जनवरी को हीराकुंड एक्सप्रेस पटरी से उतर गई और 50 लोग इस साल के शुरुआत में ही अपनी जान गवाँ बैठे और सैकड़ों घायल। बीते तीन सालों में छोटे-बड़े लगभग 30 रेल दुर्घटनाएं हो चुकी हैं जिनमे 6 मेजर एक्सीडेंट्स हैं। बार बार ऐसी घटनाओं को दुर्घटना कहना सही नहीं होगा, मेरे खयाल से यह केवल और केवल एक लापरवाही है। अपने तीन साल के कार्यकाल में प्रभु जी का कोई भी एक काम उनके कर्मयोग को निरूपित नही करता है। रेलवे को हाईटेक बनाने के चक्कर मे आधारभूत चीजों की अनदेखी की गई है। आखिर क्या बदला इस 3 साल में,  न किराये काम हुए, न ही आमजन के लिए नए रेल चले , ना सुरक्षा बढ़ी, ना ही रेलवे ट्रैक का कथनानुसार विकास हुआ... सिर्फ और सिर्फ बकलोली पेलने की कोशिश की गई। एक हमारे शास्त्री जी थे जो रेलवे की एक मामूली सी दुर्घटना को खुद की जिम्मेदारी लेते हुए मंत्रिपद से इस्तीफा दे दिया था और एक हैं हमारे आज के मंत्री प्रभु जी जिनके लगभग 3 साल के कार्यकाल में  30 घटनाएं हो चुकी हैं, औसतन हर महीने एक। यह कर्म का योग नहीं वरन भोग है भोग।
पूरी की पूरी सरकार जनता को 3 सालों से उल्लू बनाने का काम कर रही है , न नौकरी न रोजगार ऊपर से मंहगाई की मार। देशभक्ति के बड़बोलेपन से देश का हाजमा खराब होता जा रहा है। और हम... सवाल तक नहीं करते। तुम्हें मरवाने का शौक हो चला है, उसके बिना तुम रह नहीं सकते इसलिए तुम अभी भी झुके जा रहे हो... पर मत भूलो कि तुम्हारी मार ली जाएगी और दावे के साथ कहता हूँ कि  इसबार तुम्हें दर्द भी नहीं होगा... .

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