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हम फादर्स डे क्यों मनाते हैं ?

हम फादर्स डे क्यों मनाते हैं (Why do we celebrate Fathers'Day) ?


वास्तव में यह अजीब सा प्रश्न है की हम Father's Day  अर्थात पिता दिवस क्यों मनाते हैं ? शुरू करते हैं पुराणों से, पुराण मतलब पुराना अर्थात जो बीत चुका  है लेकिंन अंग्रेजी के शब्द हिस्ट्री (History ) से यह  थोड़ा सा भिन्न है।

जीवन का आविर्भाव युग्मों से होता है यानि की दो के मिलन से होता है। इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि दो जीवों के आनंद के चरमोत्कर्ष  की प्रक्रिया ही नए जीवों का प्रतिपादन करते हैं.  हमारे अपने होने का भी श्रेय दो को ही जाता है जिसे हम आमतौर पर माता-पिता की संज्ञा देते हैं।

माँ की महिमा का गुणगान चहुओर है पर पिता के बारे में  स्कंन्द पुराण के छठे अध्याय में लिखा है



पिता स्वर्गः पिता धर्मः पिता परमकं तपः | 
पितरि प्रीतिमापन्ने सर्वाः प्रीयन्ति देवताः ||

''अर्थात , पिता ही स्वर्ग है , पिता ही धर्म और सबसे बडा तप है।  अगर पिता खुश है तो ईश्वर भी प्रसन्न होते हैं।" चलिए ये तो पुरानों में लिखा है जिसका हमें-आपको तनिक भी पता नहीं है   लेकिन जीवन जीने का एक संविधान होता है जिसे आप अपने पुराणों में देख सकते हैं। समाज सुचारु रूप से चलता रहे हमने इसके लिए नियम बनाये जिसे हम अलग-अलग नाम से जानते हैं जैसे की भारत में संविधान है यह सार्वभौमिक होता है।

हर समाज का अपना  देश का जनहित के लिए नियम तैयार किये जाते है।  पर व्यक्तिगत जीवन जीने का नियम हमें धर्म देता  है।


हम फादर्स डे  क्यों मनाते हैं (Why do we celebrate Fathers'Day)


ये फादर्स डे विश्व के कई कोनो में मनाये जाते है पर असल में इसकी शुरुआत  अमेरिका के सोनोरा स्मार्ट डोडो ने Mothers  Day के आधार पर की। लेकिन दर्शन शास्त्र के अनुसार पेगीजम की मान्यता है की वह प्रकृतिवाद को अपनाता है।  इनके सारे के सारे दर्शन प्रकृति से जुड़े हैं और यह सूर्य को अपना सर्वमान्य मानते हैं.और इसे पिता के तौर पर देखते हैं और इसके लिए एक खास दिन है जिसे वह फादर्स डे के नाम से बताते हैं.  वैसे तो यह सनातनी सभ्यता में छठ जैसे पर्व की भी मान्यता थोड़ी-बहुत मिलती जुलती है पर इनका दर्शन कुछ अलग है।

महाभारत में यक्ष ने युधिष्ठर से एक प्रश्न किया था जो इस सन्दर्भ में काफी गंभीर है।  यक्ष का प्रश्न इस प्रकार है " पृथ्वी से महान कौन है , आकाश से भी ज्यादा बुलंद कौन है?  " उत्तर में युधिष्ठिर कहते है की "पृथ्वी से भी महान माता और आकाश से भी बुलंद पिता हैं।  "

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 मतलब कहने का तो आप समझ गए होंगे लेकिन आज बदलते परिवेश के अनुसार रिश्तों में भी काफी अमूल-चूल परिवर्तन हुआ है।  अग्रसर समाज में मानवीय मूल्यों की कहीं न कहीं गिरावट हुयी है।  अगर यों  कहें की
आगे बढ़ने और ऊँचा दिखने की रफ़्तार में हम अपने आप को सामजिक तौर पर नकार रहे हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

ॐ व्यास ॐ के शब्दों में यूँ कहें तो ,

पिता जीवन है, संबल है, शक्ति है
पिता सृष्टि के निर्माण की अभिव्यक्ति है

पिता उंगली पकड़े बच्चे का सहारा है
पिता कभी कुछ खट्टा, कभी खारा है

पिता पालन है, पोषण है, पारिवारि का अनुशासन है
पिता धौंस से चलने वाला प्रेम का प्रशासन है

पिता रोटी है, कपड़ा है, मकान है
पिता छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान है। . . .


 ओम व्यास ओम जी की पंक्तियों के बाद सिर्फ आत्म-संवेदन ही बचता है। आगे बढ़ने की अनहद चेष्टा में हम यूं  धंस चुके  हैं की घर वापसी थोड़ा कठिन दिखता है लेकिन इसके बाबजूद भी यह असंभव नहीं है. लेकिन इसके होने की संभावना तभी तार्किक है है जबतक की हम अपने आप में इस सम्पूर्ण विश्व की छाया ना पा सकें . अर्थात हम अपने आप को इस प्रकृति से अलग न समझे. 

पितृ सत्तात्मक समाज में जहां पिता को सामाजिक स्तर  पर रखा गया है वहीँ उससे अलग माता का एक उच्चतम दर्जा है।  पिता घर के बाहर है तो माँ घर के अंदर।  और  इस अंदर-बाहर के खेल से घर सामाजिक मान्यताओं पर सुदृढ़ होता है।  दोनों ज़रूरतें हैं मानवता की।  किसी एक मात्र के होने से काम बिगड़ सकता है।  

भारतीय  समाज में ओल्ड ऐज होम (वृद्धा आश्रम ) की प्रथा 

जिस प्रकार हम विकासशील देश से विकसित राष्ट्र की तरफ अग्रसरित होते जा रहे हैं, सामाजिक समसरता घटती जा रही है।  भारतीय जनगणना २०११ के अनुसार देश में १०४ मिलियन लोग ६० वर्ष के  हैं जिसमे ५३ मिलियन स्त्री और ५१ मिलियन पुरुष हैं (सोर्स -United Nations Population Fund and HelpAge India).
इस बढ़ते ग्राफ ने भारत में  ओल्ड ऐज होम (वृद्धा आश्रम ) की प्रथा को आगे बढ़ाया है जिसमे कई NGO मिलकर काम कर रहे हैं।  भारतीय सरकार के एक आंकड़े के अनुसार भारत में चलने वाले कुल ७२८ वृद्धा आश्रम हैं जिसमे की ५४७ का डाटा मालूम है।  इनमे से ३२५ वृद्धा आश्रम  फ्री हैं तो ९५ में शुल्क लगता है और बाकि के  १२७ में दोनों.
अपने आसपास किसी बुजुर्ग को आप उन्हें निचे लिंक के साथ  थोड़ी मदद कर सकते हैं।  यह दादा-दादी के  नाम से चलता है 

बढ़ते एकल परिवार में समाज में बुज़ुर्गों के देखभाली अच्छी नहीं है. और तो और इनके ऊपर  प्रताड़ना की कहानी एक के बाद एक टीवी एपिसोड की तरह देखने को मिलती है। आज जिस प्रकार तकनिकी के साथ हमारा समाज बढ़ रहा है , खुशहाल है वहीँ इसके दुसरे तरफ का पहलू काफी डरावना है। आइये इसे एक एपिसोड के जरिये समझने की कोशिश करते हैं।


 श्रवण कुमार एक कल्पना हो सकता है पर आप ,आप ही  हैं , स्वयं हैं , साक्ष्य हैं इसे थोड़ा समझिये  और प्रकृति के विधान को बढ़ने में थोड़ी सहायता कीजिये।  परस्पर सहयोग और प्रेम अनिवार्य है।  अंततः मेरी और हम सबकी तरफ से :
मेरा साहस मेरी इज़्ज़त…मेरा सम्मान है पिता
मेरी ताकत मेरी पूंजी…मेरी पहचान है पिता ….!!

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