परों को खोल , ज़माना उड़ान देखता है ।
ज़मीं पे बैठ के क्या आसमान देखता है ।।
दिल्ली की सर्दी भले ही हड्डी गला देती हो लेकिन इसकी राजनीति देश को गर्म रखती है। भारत के अंदर अनवरत रूप से बहने वाली ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है दिल्ली।
साल 1911 के इसी दिसंबर महीने में 'एम्परर ऑफ इंडिया ' जॉर्ज पंचम और क्वीन मेरी ने 'दिल्ली दरबार' में यह पहली बार ऐलान किया कि ब्रिटीश सरकार के अधीन भारतीय प्रान्तों की राजधानी कलकत्ता से ट्रांसफर कर दिल्ली लाया जाएगा क्योंकि कलकत्ता में हो रहे नेशनलिस्ट मुबमेंट्स ने अंग्रेजों के नाकों में दम कर रखा था , हाथ से भारत निकलता जा रहा था । और फाइनली फरवरी 1931 में दिल्ली भारत की राजधानी बन गयी।।
चौधरी ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने। तबसे लेकर आजतक दिल्ली ने कई रंग देखे और बिखेरे। ये वही दिल्ली है जहाँ 2014 में मोदी लहर भी असर नहीं कर पाई। ये बात सच है कि नरेंद्र मोदी एक करिश्माई व्यक्तित्व के धनी हैं जिसने लोगों के दिलों में जगह बनाई लेकिन केजरीवाल ने दिल्लीवासियों के दिमाग में।
व्यक्ति का तुनात्मक अध्ययन पूर्णतः निष्पक्ष नहीं हो पता है इसीलिए दोनों अपने आप मे माहिर हैं, कर्मठ हैं। लेकिन मनोज तिवारी जो एक मुख्यमंत्री पद के नकाबपोश चेहरा हैं BJP के; संघर्षशील हैं, लोकप्रिय हैं, दिमागिस्ट हैं । यूपी बिहार के राजनीतिक अखाड़े से निकले हैं।
याद कीजिये अन्ना आंदोलन में कुमार विश्वास, केजरीवाल और मनोज तिवारी मंच साझ रहे थे। कोंग्रेस के खिलाफ मोर्चेबाजी कर रहे थे लोकपाल तो महज़ एक बहाना था। विश्वास राजनीति में अपना विश्वास नहीं जमा पाए लेकिन मनोज तिवारी और अरविंद केजरीवाल आज आमने सामने हैं। दोनों परिपक्व हैं । राजनीति और राजनीतिक समझ पर अच्छी पकड़ है। दिल्ली में AAP के वापिस आने के भले ही कयास लगाए जा रहे हैं लेकिन BJP एक ग्राउंडेड पार्टी है जिसकी जमीनी पकड़ काफी मजबूत है। इसलिए अभी से यह कहना कि आप सरकार बनाने में पूर्णतया सफल होगी, थोड़ी जल्दीबाजी होगी।।
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