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बिहार की अंधी सरकार के निकम्मेपन का नाम है चमकी बुखार


बिहार और चमकी बुखार का नाता थोड़ा पुराना है.  लेकिन एक और बात है जिसे आप भी अंगीकार करेंगे कि बिहार की अंधी सरकार के निकम्मेपन का नाम है चमकी बुखार (Chamaki Bukhar is a name of Bihar Govt's Insipidness). कठोपनिषद के नचिकेता-यमराज संवाद में आज नचिकेता (प्रश्न करेवाला ) खेल से गायब हो चुका है . अब वह प्रेत बन चुका है अगर नागार्जुन की माने तो। उनकी कविता 'प्रेत का बयान'' का एक अंश  है..


"ओ रे प्रेत -"
कडककर बोले नरक के मालिक यमराज 
-"सच - सच बतला !
कैसे मरा तू ?
भूख से , अकाल से ?
बुखार कालाजार से ?... 



अगर बाबा नागार्जुन की जगह मैं होता तो कहता ,

" महाराज !
सच - सच कहूँगा 
झूठ नहीं बोलूँगा 
नागरिक हैं हम स्वाधीन भारत के

 मुजफ्फरपुर  जिला है , सूबा बिहार में ... 
(पूरी कविता यहां पढ़ें )

जी हाँ , १२० बच्चों को, सरकारी आंकड़ों के अनुसार फिर से मृतक की फेहरिश्तों में सजा दिए जायेंगे।  लेकिन क्या बात यहीं तक रूकती है ? ऐसे कई आंकड़ें हैं चमकी की , भारत खासकर बिहार के स्वास्थय समस्या की।  बिहार  के मुजफ्फरपुर की चमकी बुखार को इस तरह चमकना और सरकारी नुमांइदों को इसकी अनदेखी करना बिहार व भारत सरकार के लोगों के स्वास्थ्य के प्रति इस प्रकार का लोथलपन इनकी अकर्मण्यता को दर्शाता है।  नितीश जी इससे ज़रा भी आहात न होते हुए अपनी कुर्सी के खेल में दिल्ली रहे ! और तो और प्रधानमंत्री मोदी जी जिसे राजनितिक भाषा में चौकीदार भी कहा जाता है। एक क्रिकेटर का चोटिल फोटो तो ट्वीट करते हैं लेकिन उनके वाल पर चमकी का च भी नहीं मिला।  शायद हमारे 'च' होने की वजह से। 

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क्या है चमकी बुखार ?

चमकी बुखार (AES- Advanced Encryption Standard,अक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम ) हमारे शरीर के मुख्य नर्वस सिस्टम यानी तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है और वह भी खासतौर पर बच्चों में। इसमें AES के एंजाइम शरीर में ग्लूकोज़ की हद तक कमी कर देते हैं जो हमारे लिवर एवं ब्रेन को डैमेज करना शुरू करता है।  

चमकी बुखार के लक्षणों की बात करें तो... 

- शुरुआत तेज बुखार से होती है 
- फिर शरीर में ऐंठन महसूस होती है 
- इसके बाद शरीर के तंत्रिका संबंधी कार्यों में रुकावट आने लगती है 
- मानसिक भटकाव महसूस होता है 
- बच्चा बेहोश हो जाता है 
- दौरे पड़ने लगते हैं 
- घबराहट महसूस होती है 
- कुछ केस में तो पीड़ित व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है  


बिहार की अंधी सरकार के निकम्मेपन का नाम है चमकी बुखार 


चमकी बुखार से सिर्फ इस साल ही बच्चे नहीं मरे हैं बल्कि पिछले कई सालों से मरते आ रहें है।  साल २०१२ में १७८ बच्चों की मौत हुयी थी जबकि २०१४ में १३९ बच्चों की। कहते हैं की इस बीमारी के फैलने का जड़ कुपोषण और गन्दगी है। तो बिहार की इसी  सरकार ने इन सात सालों में क्या किया ? क्या बिहार में स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हुईं ? क्या बिहार की शिक्षा में सुधार हुआ ? क्या बिहार में कोई वहाँ के नौजवानो को रोज़गार देनेवाली कम्पनियाँ आईं ? और , क्या प्रधानमंत्री के स्वास्थ्य अभियान ने इनकी जान बचा पायी ? जिनसे पूछो तो वह सड़क , रेल , बुलेट , बिजली आदि -आदि की बात करता है। 

                                          संस्मरण -  

 अरे भैया ! जब हम ही ना होंगे तो इनका उपभोग  कौन करेगा ? लेनिन मज़े की बात है जीवन के ज़रूरत वाली पानी की कोई बात नहीं करता। पानी जिसपर विश्व के हरेक लोगों का हक़ है उसका बाज़ारीकरण  किया जा रहा है। सरकार के रवैये को देखकर लगता है की जैसे सामंतवाद की शुरुआत सी हो रही है। 

 प्रेस कांफ्रेंस के दौरान भारत के Minister of State for Health and Family Welfare चमकी बुखार के सदमे से झपकी लेने लगते है और बेबाकी तो  देखिये कहते हैं चिंतन में थे।  इसपर ग़ालिब साहब की एक पंक्ति याद आती है ,

रगों में दौड़ते  रहने के हम नहीं  कायल ,
जब आँख से ही न टपका , तो वह लहू क्या  है ?




एक आंकड़े के अनुसार भारत में कुपोषण से मरने वाले २१% बच्चे हैं जिनकी उम्र शून्य से पांच वर्ष की है जबकि खासकर बिहार में इसका प्रतिशत  ४४% है। आइये इस सन्दर्भ में  एक और आंकड़ा देखते हैं, हमारी नेशनल सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल (NCDC ) के कुल कर्मचारी की संख्या भारत के १३७ करोड़ की आबादी के लिए ४३४  है और इसका बजट है २३८ करोड़। 
इसके विपरीत अमेरिका ने जिसकी जनसंख्या हमसे काफी कम है, साल 2018 में इस प्रकार की हेल्थकेयर संस्था  Centers for Disease Control and Prevention का बजट था सतहत्तर हज़ार करोड़ रूपया और इसमें काम करने वालो की संख्या तक़रीबन दस हज़ार है.  पूछा जाना चाहिए की आज़ादी के बाद भी हम कहाँ खड़े हैं ?

लेकिन इनसबके बावजूद भी  ख़ुशी की बात यह है हमारे जैसे ही कुछ लोग मानवता के प्रति अपनी कृतज्ञता में जमकर हिस्सा लेते हैं।  और यही बात उस नौजवान की जिसने चमकी बुखार की जागरूकता का एक अभियान चलाया  नहीं तो कई और बिना जीवन जिए ही मर जाते।   यह समाज हमारा है। और हमें ही इसके लिए कुछ करना होगा।  इसके लिए सबसे  महत्वपूर्ण है कि हम अपने अधिकारों को जाने और सामाजिक बनें।  सबकुछ सरकार पर छोड़ देना वाज़िब नही है। इसलिए ,अप्पो दीपो भवः।

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