आखिरकार प्रधान सेवक के भतीजी की चोरी हुई बैग मिल गयी। इस खतरनाक आपरेशन को दिल्ली के 700 जवानों द्वारा 24 घंटे के भीतर सम्पन्न किया गया। वैसे, महीने दिन पहले भीड़-भाड़ वाले इलाके CP में गनपॉइंट पर सामान लूट लिए गए लेकिन FIR वाली फ़ाइल दूसरी टेबल पर नहीं पहुंच पाई, दो साल से ऊपर हो गए नजीब को JNU से गायब हुए और कहानी ठंडे बस्ते में , सिर्फ दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों में छोटे-मासूम बच्चों के अपहरण (किडनी गैंग) का अगर डेटा देखेंगे तो दिमाग झन्ना जाएगा । फेहरिश्त लंबी है ऐसी कहानियों की जिन्होंने बिना उपचार के ही दम तोड़ दी। लेकिन PM के समबन्धियों का सामान सही सलामत वापिस आ गया इससे ज़्यादा ख़ुशी की बात क्या हो सकती ै।
ये पर्स वाला मामला भले नया हो लेकिन इतिहास में थोड़ा पीछे जाएं तो ये आपको और चौकायेगा। ऐसी कई घटनाएं हुयी जिसमे समाज और सामाजिक व्यवस्था को दरकिनार करते हुए एक खास लोगों पर केंद्रित रही और यह अनवरत है। ये ख़ास लोग अपनी सुख -सुविधाओं के अनुसार कानून बनाते है और समय समय पर इसमें परिवर्तन भी। रोमन साम्राज्य को अगर आप पढ़ेंगे तो जानेंगे की एक राजा को अपनी भतीजी से प्यार हो गया लेकिन शादी हो नहीं सकती थी क्योंकि कानून और समाज इसकी इजाज़त नहीं देता था। आप देखिये कि आम लोगों का नहीं है बल्कि एक राजा का है और राजा कानून में परिवर्तन कर अपनी भतीजी से शादी कर लेता है। आज के समय की बात करें तो इससे कुछ अलग नहीं दिखती है। अपनी साख और सत्ता कायम रखने के लिए तत्कालीन सरकार द्वारा कानून बनाये या ख़ारिज किये जा रहे हैं.
असल में ये एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। ये वो लोग हैं जो पूँजीवादी व्यवस्था के ही धरोहर हैं। जीवन मे अगर कभी आप फ्री हो पाएं तो रूसी लेखक एंटोन चेखव की लिखी एक छोटी सी कहानी Chameleon को ज़रूर पढ़ें । हिंदी में यह गिरगिट के नाम से मशहूर है जो आज भी तत्कालीन समस्याओं दर्शाता है।
गौर से देखें तो भारत मे लोकतंत्र का मतलब सिर्फ चुनाव ही रह गया है बाद बाकी पूँजीवाद शासन-प्रशासन अर्थात पूँजीवादी व्यवस्था जिसे अंग्रेजी में कैपिटलिज्म कहते हैं। कार्ल मार्क्स के संदर्भ में (जिसे हम मार्क्सवादी या वामपंथी विचारधारा भी कहते हैं) पूंजीवाद को समझना बेहद आसान है। आइये देखते हैं कि वास्तव में पूँजीवादी व्यवस्था क्या होती है ?
मार्क्स के मुताबिक जिस वर्तमाम व्यवस्था में हम जी रहे हैं वह पूँजीवाद है। पूँजीवाद वह व्यवस्था है जिसमें उत्पादन के साधनों पर पूंजीपतियों का स्वामित्व होता है। इस व्यवस्था में दुनिया दो वर्गों में बँटी हुई मालूम होती है। एक तरफ वो वर्ग है जिसका उत्पादन के सारे कारक जैसे जमीन, कल-कारखाने, पैसे इत्यादि पर कब्ज़ा होता है इसे मार्क्स पूँजीपति कहते है। वहीँ दूसरी ओर वह वर्ग है जिसके पास कुछ नहीं है और मजबूर हैं अपने श्रम को बेचने के लिए इसे मज़दूर वर्ग कहते हैं।
और पढ़ें -
ऐसी व्यवस्था को कायम रखने के लिए पूँजीपति पूरी की पूरी एक सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करता है जिसमे धर्म आपको झांसा देता है और आप अपने धर्म के सहारे धरती के नरक को खुशी पूर्वक झेलते रहते हैं।
#ToBeContinued
यह खेल और खेलनेवाले दोनों शातिर हैं। लेकिन मार्क्स सिर्फ टीका टिप्पणी ही नहीं करते उचित उपाय भी बताते हैं .
ये पर्स वाला मामला भले नया हो लेकिन इतिहास में थोड़ा पीछे जाएं तो ये आपको और चौकायेगा। ऐसी कई घटनाएं हुयी जिसमे समाज और सामाजिक व्यवस्था को दरकिनार करते हुए एक खास लोगों पर केंद्रित रही और यह अनवरत है। ये ख़ास लोग अपनी सुख -सुविधाओं के अनुसार कानून बनाते है और समय समय पर इसमें परिवर्तन भी। रोमन साम्राज्य को अगर आप पढ़ेंगे तो जानेंगे की एक राजा को अपनी भतीजी से प्यार हो गया लेकिन शादी हो नहीं सकती थी क्योंकि कानून और समाज इसकी इजाज़त नहीं देता था। आप देखिये कि आम लोगों का नहीं है बल्कि एक राजा का है और राजा कानून में परिवर्तन कर अपनी भतीजी से शादी कर लेता है। आज के समय की बात करें तो इससे कुछ अलग नहीं दिखती है। अपनी साख और सत्ता कायम रखने के लिए तत्कालीन सरकार द्वारा कानून बनाये या ख़ारिज किये जा रहे हैं.
Photo credit: MrOnline.org |
असल में ये एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। ये वो लोग हैं जो पूँजीवादी व्यवस्था के ही धरोहर हैं। जीवन मे अगर कभी आप फ्री हो पाएं तो रूसी लेखक एंटोन चेखव की लिखी एक छोटी सी कहानी Chameleon को ज़रूर पढ़ें । हिंदी में यह गिरगिट के नाम से मशहूर है जो आज भी तत्कालीन समस्याओं दर्शाता है।
गौर से देखें तो भारत मे लोकतंत्र का मतलब सिर्फ चुनाव ही रह गया है बाद बाकी पूँजीवाद शासन-प्रशासन अर्थात पूँजीवादी व्यवस्था जिसे अंग्रेजी में कैपिटलिज्म कहते हैं। कार्ल मार्क्स के संदर्भ में (जिसे हम मार्क्सवादी या वामपंथी विचारधारा भी कहते हैं) पूंजीवाद को समझना बेहद आसान है। आइये देखते हैं कि वास्तव में पूँजीवादी व्यवस्था क्या होती है ?
मार्क्स के मुताबिक जिस वर्तमाम व्यवस्था में हम जी रहे हैं वह पूँजीवाद है। पूँजीवाद वह व्यवस्था है जिसमें उत्पादन के साधनों पर पूंजीपतियों का स्वामित्व होता है। इस व्यवस्था में दुनिया दो वर्गों में बँटी हुई मालूम होती है। एक तरफ वो वर्ग है जिसका उत्पादन के सारे कारक जैसे जमीन, कल-कारखाने, पैसे इत्यादि पर कब्ज़ा होता है इसे मार्क्स पूँजीपति कहते है। वहीँ दूसरी ओर वह वर्ग है जिसके पास कुछ नहीं है और मजबूर हैं अपने श्रम को बेचने के लिए इसे मज़दूर वर्ग कहते हैं।
और पढ़ें -
ऐसे में पूंजीपति अगर मुनाफा कमाना चाहते हैं तो उन्हें मज़दूरों को कम सैलरी पर रखकर ज़्यादा काम करवाना होगा। ताकि आय ज़्यादा हो औऱ खर्च नाम मात्र। जो समाज में आर्थिक विषमता का एक महत्वपूर्ण कारण है।
ऐसी व्यवस्था को कायम रखने के लिए पूँजीपति पूरी की पूरी एक सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करता है जिसमे धर्म आपको झांसा देता है और आप अपने धर्म के सहारे धरती के नरक को खुशी पूर्वक झेलते रहते हैं।
#ToBeContinued
यह खेल और खेलनेवाले दोनों शातिर हैं। लेकिन मार्क्स सिर्फ टीका टिप्पणी ही नहीं करते उचित उपाय भी बताते हैं .
No comments:
Post a Comment