ओल्ड जेएनयु का केरला कैफे दिन में धूप सेंकने और शाम में लकड़ियों को ताड़ने का महत्वपूर्ण केंद्र है। आज जेएनयू भले ही बदनामी का दंश झेल रहा है लेकिन यह विश्व में आर्ट एंड कल्चर की पढाई में एक खास स्थान रखता है और इसी के चारदीवारी से सटा एक छोटी सी जगह है बेर सराय।
यहां इंजीनियर्स कौड़ी के भाव में इधर -उधर भटकते पाए जाते हैं . कुकुरमुत्ते की तरह खुले इंजीनियरिंग कॉलेज और बेरोजगारी ने बेर सराय की पापुलेशन डेंसिटी इतनी बढ़ा दी है कि आज यह ईस्ट एशिया का मकाऊ हो चला है। यकीन मानिये अगर नौसिखिये निशानेबाज भी एक ढेला उठाकर मारें तो दो -चार इंजीनियर सिगरेट पीते-पीते ही अपनी शहादत दे देंगे। पर कोई ढेला नहीं मारता हमें , हमारी स्थिति देखकर। हमारी स्थिति मनरेगा के मज़दूर से भी बदत्तर है। यह तंज़ नहीं साब , हकीकत है और तभी हम गुनगुनाते हैं -
ऐसा लगता है की अदम गोंडवी ने यह पक्ति हमारे लिए ही लिखी हो। भारत में आज बेरोजगारी निम्नतर स्तर पर है। देश के हुक्मरानो की दलीलों में हम नहीं जाएंगे लेकिन यह सच है कि हमारी उम्र के साथ यह बेरोजगारी भी कदम से कदम मिलाकर चल रही है।
और पढ़ें -
प्रतिस्पर्धा के दौर में हम बहुत ही ज़्यादा तुलनात्मक हो चुके है. हर बात पर हम अपनी तुलना या तो ब्रिटैन, अमेरिका से करते है या फिर पिछले शासनकाल को जिम्मेदार ठहरा देते हैं। लेकिन याद हो, आपातकाल के बाद नयी सरकार ने जब अपना कार्यभार संभाला तब 1976 में 42nd Constitutional Amendment Act पारित हुआ। और यह वही समय था जब हमारे Preamble में SOCIALIST और SECULAR जैसे शब्द जुड़े और साथ ही Fundamental Rights भी।
लगातार दूसरी बार सत्ता में आयी बीजेपी की नींव भी यही जनता गवर्नमेंट है जिसने संविधान के बयालीसवें संशोधन में अग्रणी भूमिका निभाई और इंदिरा गांधी के डिकेटरशिप को चुनौती दी। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चला यह आंदोलन भारत की दूसरी आज़ादी थी जिसने नेहरू-गांधी के वंशवादी परम्परा पर जड़कर तमाचा मारा।
पर तत्कालीन सरकार की नीतियां SOCIALIST और SECULAR जैसे शब्दों से कोसों दूर खड़ी नज़र आती है। भारत को सुपरपॉवर अमरीका , चाइना और रूस के नक़्शे कदम पर नहीं बनाया जा सकता है। आज जिस कदर हर क्षेत्र में निजीकरण पर ज़ोर दिया जा रहा है आगे चलकर यह समाज में विषमताओं को जन्म देगा। अमीर और अमीर हो जायेंगे और गरीब आज से भी निम्नतर स्थिति में होंगे ; जो जन्म देगा समाज में खूनी क्रांति को।
भारत में बेरोजगारी अन्य देशों की अवधारणा को कॉपी-पेस्ट कर खत्म नहीं किया जा सकता बल्कि भारत की भौगोलिक , आर्थिक , सामाजिक व नैतिक मूल्यों को सही परिपेक्ष्य में देखते हुए करना होगा।
यहां इंजीनियर्स कौड़ी के भाव में इधर -उधर भटकते पाए जाते हैं . कुकुरमुत्ते की तरह खुले इंजीनियरिंग कॉलेज और बेरोजगारी ने बेर सराय की पापुलेशन डेंसिटी इतनी बढ़ा दी है कि आज यह ईस्ट एशिया का मकाऊ हो चला है। यकीन मानिये अगर नौसिखिये निशानेबाज भी एक ढेला उठाकर मारें तो दो -चार इंजीनियर सिगरेट पीते-पीते ही अपनी शहादत दे देंगे। पर कोई ढेला नहीं मारता हमें , हमारी स्थिति देखकर। हमारी स्थिति मनरेगा के मज़दूर से भी बदत्तर है। यह तंज़ नहीं साब , हकीकत है और तभी हम गुनगुनाते हैं -
" सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद हैं
दिल पे रख कर हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है||"
और पढ़ें -
प्रतिस्पर्धा के दौर में हम बहुत ही ज़्यादा तुलनात्मक हो चुके है. हर बात पर हम अपनी तुलना या तो ब्रिटैन, अमेरिका से करते है या फिर पिछले शासनकाल को जिम्मेदार ठहरा देते हैं। लेकिन याद हो, आपातकाल के बाद नयी सरकार ने जब अपना कार्यभार संभाला तब 1976 में 42nd Constitutional Amendment Act पारित हुआ। और यह वही समय था जब हमारे Preamble में SOCIALIST और SECULAR जैसे शब्द जुड़े और साथ ही Fundamental Rights भी।
लगातार दूसरी बार सत्ता में आयी बीजेपी की नींव भी यही जनता गवर्नमेंट है जिसने संविधान के बयालीसवें संशोधन में अग्रणी भूमिका निभाई और इंदिरा गांधी के डिकेटरशिप को चुनौती दी। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चला यह आंदोलन भारत की दूसरी आज़ादी थी जिसने नेहरू-गांधी के वंशवादी परम्परा पर जड़कर तमाचा मारा।
भारत में बेरोजगारी अन्य देशों की अवधारणा को कॉपी-पेस्ट कर खत्म नहीं किया जा सकता बल्कि भारत की भौगोलिक , आर्थिक , सामाजिक व नैतिक मूल्यों को सही परिपेक्ष्य में देखते हुए करना होगा।
No comments:
Post a Comment