आज़ादी के ७२ वर्ष पूरे हो चुके हैं . यह गौरव की बात होनी चाहिए और वस्तुतः है भी . पर एक बारगी आप अपने चारों तरफ नज़र उठाकर देख लें तो निराशा , नकारात्मकता ,अविश्वास जैसी ही चीजें दिखाई देती हैं. कहीं भूख है तो कहीं भूख के नाम पर दंगे हैं , एक अनकही प्यास पर खून की नदियाँ पाटी जा रही हैं , प्यार है पर प्यार का रस लूटा जा रहां है , छूटा जा रहा है. लेकिन हम उसी जोशो-रोश से यह आज़ादी भी मना रहे हैं . हम कई मामलों में बढ़ रहे हैं और कईयों में तो कई गुना बढ़ोतरी कर ली . वैश्विक पटल पर लोगो के बीच हमारी स्थिति भी अच्छी है. पर कुछ बातें है जिसपर हमारी नज़र जानी चाहिए . हम आजादी के ७३वां वर्षगाँठ मना रहे हैं लेकिन हमारे सामने कई सारी चुनौतियाँ सुरसा की भांति मुँह बाए खड़ी है.
Challanges & Threats to Indpendent India:
Where-to-be-born Index के अनुसार, जिसके मुख्य आधार हैं Material well-being , Life expectancy, political freedoms, Job security & unemployment rate,Climate ,Governance (measured by ratings for corruption) में भारत का स्थान 80 देशों में 66 है. अगर भारत की World Happiness Report देखें तो हमारा स्थान 155 देशॉन में से 122 है . IMFRI की हालिया रिपोर्ट में भारत का Global Hunger Index , 103 / 119( देश ) है . UN के द्वारा कराये गए Education Index में हम 145 / 191( देश ) हैं. हमारा Employment rate है 42 / 47 (देश).लेकिन ऐसा नहीं है कि बढ़ नहीं रहे है; Forbes के द्वारा कराये गए एक सर्वे में हमारा Number of Billionaires स्थान है 3 / 71 ( देश ). हम Imports के मामले में 222 देशो में से 12 वें स्थान पर है . 222 देशों में मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वालों में सबसे आगे हैं . ऐसे कई डाटा हैं जो एक बार सोचने पर मजबूर करती है . इसे आप यहाँ देख सकते हैं .
आज जिस गति से हमारे अन्दर एक्सेप्टेंस और रिजेक्शन की भावना प्रबल हो रही है हममे चिंतन की जिज्ञासा ख़त्म हो गयी है . आज हम जिस कदर नेहरु को गरिया रहे हैं कभी चीन के नाम पर तो कभी कश्मीर के नाम पर , कभी भारत का चीटर तो कभी कुछ . लेकिन इन सबके बावजूद पंडित जवाहर लाल नेहरु वर्तमान भारत के आर्किटेक्ट हैं (नेहरु के पर्सनल लाइफ को छोड़ते हुए ).
उनमें सोचने और समझने की शक्ति प्रखर थी . इनका रेंज काफी बड़ा था . बेसिक एडुकेशन से हैवी कल-कारखाने तक, नारी मुक्ति से ट्राइबल वेलफेयर तक , statistics कलेक्सन से विश्व शांति तक , कला संस्कृति से लेकर माउंटेन क्लाइम्बिंग और क्रिकेट तक .
नेहरु के लिए भारत की आज़ादी केवल राजीतिक स्वतन्त्रता नहीं थी . उनका कमिटमेंट चेंज और डेवलपमेंट पर था. वह भारत समाज को Equitable और Egalitarian बनाना चाहते थे . मार्क्स और गाँधी के विचारो का इनके ऊपर काफी प्रभाव था .
Democracy, Rule of Law, Respect for the freedom and Dignity of the Individual, social equity and equality, non-violence इनकी सोच में थी. भारत के एकीकरण में सरदार बल्लभ भाई पटेल जिस प्रकार अन्दर के स्टेट्स को एक कर रहे थे तो नेहरु बाहर के देशो से अपने को दोबारा आक्रमण से बचा रहे थे, कूटनीतियां कर रहे थे , भारत जैसे विशाल देश को चलाने के लिए नीतियां बना रहे थे . उस समय विश्व के दो पॉवर United States और Soviet Union अपने शक्ति विस्तार में लगे थे . लेकिन नहरू ने इन दोनों को नाकारा जिसका परिणाम गुट निरपेक्ष आन्दोलन (NAM) है .
ऐसी कई बातें है जिसका जिक्र विपिन चंद्र ने अपनी पुस्तक India since Independence में किया है ।आपको यह किताब ज़रूर पढ़नी चाहिए ताकि आप यह जान सके की हमारे पूर्वज कैसे थे ? उन्होंने किन हालातों में अपने और अपने भविष्य को संभाला ? हमारे होने की नींव रखी।
ताकि हम एक मजबूत स्वतंत्र राष्ट्र बनाकर मार्स तक कि सैर सके, इसी का परिणाम है कि 2020 के आस पास शुरू होने वाले एक और अजूबे Honymoon on the Moon की ।
जी हाँ, लोग चंद्रमा पर हनीमून मनाने की तैयारी कर रहे हैं और एक हम हैं कि दिन बी दिन नॉस्टैल्जिक बने जा रहे है। इसी चंद्रमा पर हनीमून कार्यक्रम के तहत भारत ने खुद के स्पेस स्टेशन बनाने की बात कही जो 2020 से शुरू हो रहा है। ताकि हम विश्व को चंद्रमा जैसे खर्चीले सैर सपाटे को कम कीमत पर अपना सर्विस बेच सके और अत्यधिक लाभ कमा सके।
आजाद भारत की सबसे बड़ी चुनौती :
कम्प्यूटर साइंस के आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का भी एक प्रोजेक्शन है कि आनेवाले 2080 में ,यानी कि अबसे मात्र 60 साल बाद सारे ह्यूमन लेबर को रोबोट्स व मशीन्स से रिप्लेस किये जायेंगे। और इसकी शुरुआत हो चुकी है जिसकी पहली झलक 2026 में मिलेगी जब आपके बच्चे के एग्जाम पेपर्स भी ये रोबोट्स लिखेंगे। और यही रोबोट आपको यह जानकर हैरानी होगी कि २०४५ तक एक अच्छी एडिटोरियल मैगज़ीन का भी संपादकीय , एक रोबोट्स लिख सकेगा।थोड़ा सोचिये ! ये कोई कहानी नही है। हमारा और आपका भविष्य है । आज जिस रोबोट्स से आप खेल रहे हैं यही आपको खेलाएगा। लेकिन असली मज़ा रोबॉट बनने में नहीं इसके मालिक होने में आता है। समय की मांग है कि हम अपने तकीनीकी विकास पर मजबूती से पकड़ बनायें।
आप खुद ही अंदाज़ा लगा सकते हैं कि आज से दस साल पहले हमारे गांव-पंचायत में एक भी टीवी नही हुआ करता था आज हर व्यक्ति के पास अपना टीवी है जिसे वो हमेशा साथ रख सकता है और जब चाहे अपना मन बहाल सकता है। वैसे इसे समाजवादी सामाजिक अतिक्रमण कहते हैं । इस बात से हम इनकार नहीं कर सकते कि इन मोबाइल्स ने हमें सोचने को मजबूर कर दिया है जिसे हमने कई सदियों से ताखे पर रख दिया था। चाहे वह आपके गेम खेलने से हो या यूट्यूब पर कुछ करते - सुनते वक़्त । इन अविष्कारों ने हमारी सोचने की शक्ति बढ़ाई है।
आज से दस साल पहले अपने मोबाइल के कीपैड पर टाइप से हुए परेशानी आज हमें टच की टाइपिंग भी परेशान कर गयी और हमने अपने इंटेलिजेंस को बढाकर अपने गजेट्स को सुनकर समझने वाला बना लिया . ताकि अब टाइप नहीं केवल बोले और आपका काम हो जाये . गूगल के सर्च बॉक्स के अन्दर बने माइक में बोलकर देखिएगा आपका काम बन जायेगा लेकिन आपके होने पर प्रश्नचिन्ह लग रहा है ?
(समझ न आये तो दोबारा पढ़ें ! क्या पता आप समझ जाएँ। समझ कर ही शेयर करें। )
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